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Monday, 24 August 2020

विपक्ष की बात


भारतवर्ष की भूमि पर
जब शीत ऋतु लहराती थी,
असावधान बैठी देहों पर,
क्रूरता बरसाती जाती थी।

हंसते-रोते, चलते-सोते रोजमर्रा के जीवन ढोते,
लोगों के जीवन मे एक दिन आया ऐसा निराला था
लोकतंत्र का गान करके कुछ जनों ने,
देश के हृदय पर तेज़ चुभोया एक भाला था।
सुबह का अखबार जैसे अपने साथ उल्टी स्वतंत्रता लाया था,
लगता था ठंड ने कुछ लोगों का दिमाग भी हिलाया था।

विस्मय से देखते थे भारत के मनुज स्वाभिमानी,
बाहर निकले लोगों को करते विकृत नादानी,
विभाजन करवाने वालों की बातों में वे फंसते थे,
सत्ता के लिए राजनीति खेलने वाले देख हंसते थे।

(सत्ता के लिए राजनीति खेलने वाले?)

अब इनके बारे में क्या बताऊं,
ये हैं ऐसे महान भारतवासी जो -
राष्ट्रहित्कारी नीतियों का विरोध करने से पीछे नहीं ये हटते हैं,
असत्य का प्रचार करके, मगरमच्छ के आंसू बिलखते हैं
किस हद तक गिर सकते हैं ये - इतिहास इसकी गवाही है
डाह-द्वेष की मुस्कान चेहरे पर - इनके प्रयोजन साफ झलकते हैं।


ये वही हैं, अनगिनत दफा जिन्होंने  अधिकार जनता का मारा था,
कान बंद कर लेते थे ये जब-जब सरहद के जवानों ने इन्हें पुकारा था,

बदले में आर्मी चीफ को गली का गुंडा कह दुत्कारा था।

मेरे वामपंथी मित्रों ध्यान से सुनो, आज मैं तुम्हें बताता हूँ,
एक-एक करके इन "बुद्धिजीवियों" की आज मैं लंका लगाता हूँ।

निशाचरी शक्ति तीव्र है इनमे इसके प्रमाण चाहते हो?
भोपाल गैस त्रासदी में रातोंरात एंडरसन को फरार करवाना भूल जाते हो।
2G, 3G, commonwealth, आदि तो हैं अभी की बातें,
आओ इतिहास से निकलते हैं हम इनकी कुछ पुरानी यादें।
कुछ बुद्धिजीवी कहते हैं इन्होंने आज़ादी दिलवाई थी,
और स्वतंत्रता की सारी योजनाएं सिर्फ इनके अंतर से आई थी।
इनकी दलीलें तो शायद कुछ नासमझों के लिए भारी है,
ये सब मानने वालों की तो गयी मति मूढ़ की मारी है।

स्वतंत्रता का अर्थ इनको समझाना आसान नहीं,
सीधे समझ नहीं ये पाते हैं,
जिस थाली में खाते हैं,
छेद उसी में करते जाते हैं।

याद है? जब राष्ट्रीय संघ ने निषेधाधिकार (मतलब वीटो पावर) का प्रस्ताव हमें बढ़ाया था,
विचारहीन होकर चीन से मैत्री के नाम उसे गंवाया था
कितना समय लगा था फिर चीन को पलटने में?
कितना समय लगा फिर भारत के गले मे फांस अटकने में?

असहयोग आंदोलन भी अधूरा रखा था चौरी-चौरा के एवज से,
नेताजी को भी मजबूर किया था अकारण , बेवजह से,
जब यहां राजनीति खेलते किसने वचन निभाया था?
वो उधम सिंह था जिसने ड्वायर को इंग्लैंड जाकर उड़ाया था।

चलो थोड़ा और आगे आते हैं, इनकी हरकतें नज़र में लाते हैं,
जब सरदार पटेल ने पांच सौ बासठ राज्यों को भारत में मिलाया था,
तब अंदरूनी होने के बावजूद भी, किसने,
कश्मीर राष्ट्रीय संघ ले जा कर भड़काया था?

किसने सत्ता के लिए देश मे आपातकाल लगवाया था?
किसने दिल्ली में सिखों का नरसंघार करवाया था?
किसने धर्म और जाति को राजनीति में मुद्दा बनाया था?
किसने कश्मीरी पंडितों की चीख-पुकार अनसुना कर दबाया था?

ये तो कुछ नहीं, इनकी कई शर्मसार हैं बातें,
क्यों सुनते हो इनकी, झूठ बोल ये जनता को बरगलाते?
अफवाह फैलाना धर्म है इनका, दंगा करवाना जाति है,
असत्य-चालबाज़ी की आग लगाते जो स्वयं फैलती जाती है।

(ये लोग जिनको पता कुछ नहीं और दूसरों की बातों में आकर विरोध कर रहे, लाखों का फोन चलाते और मुफ्त का सरकारी कागज़ नहीं पढ़ सकते?) तो-

सत्य की परख करना चाहते हो अगर,
झूठ से पर्दा उठाना चाहते हो अगर,
तो स्वयं जांच करो तथ्यों के आधार पर
अन्यथा विरोध कारगर नहीं होता,
होता है दिखावटी, बेवजह और निराधार पर।

विरोध नहीं कहलाता है राष्ट्र को तोड़ना-जलाना-नुकसान करना
यह कहलाता हैं - स्वतंत्रता और संविधान की हत्या करना।













If you're an Indian, then after reading this does these words go through your head?





Corrupt Congress. Corrupt opposition parties. Liberals. Anti-nationals.


Tuesday, 25 February 2020

सब चुप क्यों हैं?

(कल्पना करिए आप 12-15 वर्ष पहले के भारत में हैं। जैसे जैसे मैं समय में आगे बढूंगा आप समझते जाएंगे)

रोज़ाना चलते जीवन के यापन में,

सब चुप क्यों हैं?

अंतर्द्वंद के स्थापन से भी,

सब चुप क्यों हैं?

 

सर उठा कर देखते हैं जब लोग,

पता लगता है कि रास्ते तो अब खाली है।

खुली आंख से देखते दुनिया को,

संसार की हालत भी निराली है।

आकाश में लोभ के पंछी दिखाई पड़ते हैं,

अपनों के परिवेश में पराये दिखाई पड़ते हैं,

चहुँ ओर स्वार्थ की धुंध का विस्तार है,

मंदिरों की जगह मैखाने दिखाई पड़ते हैं।

सत्य के वाक्यों में बहाने दिखाई पड़ते हैं,

झूठ की हवा भी क्या चली है,

मित्रों में अब अनजाने दिखाई पड़ते हैं।

कौन कहे सत्य और निष्ठा के लक्षण सुप्त क्यों हैं।

जानते हुए भी न जाने सब चुप क्यों हैं?

 

भारतवर्ष के भीतर भी दुश्मन हैं,

द्वेष और क्रोध से भरे ये जाते हैं,

क्षति पहुंचती है जब देश को,

मुख खोल ये गधे-सा मुस्कुराते हैं।

राष्ट्रहित की बात जब होती है,

झूठ फैला ये दंगे भड़काते हैं,

आतंकियों के मरने पर ये,

काली पट्टी बांध संसद में आते हैं,

जी भर के ये आंसू बहाते हैं,

और वर्षों तक बिरयानी उन्हें खिलाते हैं,

AFSPA और TADA जैसे कानून भी हटाते हैं।

तब, आतंकी इतने मुक्त क्यों थे?

ये देख उस समय सब चुप क्यों थे?

 

जब बढ़ा था अंधकार बहुत,

सरकार में आया था अहंकार बहुत,

जनता ने बाहुबल दिखाया था,

लोकतंत्र को सार्थक करवाया था।

उद्दंडता की जब पराकाष्ठा थी,

वंशवाद से मुक्ति की आकांक्षा थी,

विधान-पटल पर सर्द शीत छाई थी,

सरकार जब वामपंथ की अनुयायी थी,

भूमि आतंकित हो दहलाई थी,

पूरे देश की बात तो छोड़िए,

सिर्फ मुम्बई ही कई हमलों से थर्राई थी।

सेना को ज्यादातर निष्क्रियता के आदेश क्यों थे?

नेतृत्व करने वाले तब चुप क्यों थे?

 

संसार का यही नियम है मित्र,

बदलाव ही केवल स्थिरता है मित्र,

वर्षों की विचारधारा से जब अति हो जाती है,

उन्नति की राह में वह अनुपयुक्त हो जाती है।

बदलाव से वही लोग तो डरते हैं,

लूटपाट के स्थापित साधन जिनके हाथ से फिसलते हैं।

विकास के लिए बस इतनी बात ही काफी है,

सिर्फ सौ अपराध की माफी है,

नेतृत्व कोई भी हो -

जब सत्ता शिशुपाल बन जाएगी,

जनता से माफी नहीं वह पाएगी,

द्वेष में दुर्व्यवहार बढ़ेगा जिसका,

सुदर्शन से सर कटेगा उसका।

 

देखें, देखें असत्य के लिए वे कितनी आवाज़ उठाएंगे,

देखें उनके चेले कितनी गोली चलाएंगे,

देखें वे कब तक रक्षकों का लहू बहा पाएंगे,

देखें वे कितने जनों को गुमराह कर पाएंगे,

देखें अपने ढकोसलों से कब तक - "आज़ादी" के नारे लगाएंगे,

देखें वे कब तक पत्थर उठाएंगे,

देखें वे कब तक बसों को जलाएंगे,

देखें वे कितनी पुलिस चौकियों में आग लगाएंगे,

देखें भले लोग भी, आखिर कब तक शांति का पाठ पढ़ाएंगे,

देखें हम सब भी आखिर, कब तक चुप रह पाएंगे।

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