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Tuesday, 15 September 2020

मृत्यु से मुलाकात


निकल पड़ा मैं घर से किसी बात पे,
क्रोधित था मन उस दिन दुनिया के हालात पे,
उचटा हुआ मन लिए पहुंचा एक सूने मैदान में,
सहसा सन्नाटे से ठिठका, हुआ थोड़ा हैरान मैं ।





दूर दूर तक न कोई मनुष्य नज़र आता था,
न ही आकाश से कोई पंछी चहचहाता था,
रोशनी भी धीरे धीरे ढल रही थी,
धूल समेटे हुए हवा भी मंद-मंद चल रही थी।





हवा का बहाव भी ठहरता हुआ सा जाता था,
"कौन हूं मैं?", क्रोधित मन यह भूलता सा जाता था।
इससे पहले अस्तित्व की यादें मिटने को उठे
एक हल्का सा साया नज़दीक महसूस हुआ जाता था।





समझा कोई है धूर्त वहां, जो विघ्न डालने आता था,
बिन समझ-बूझ मैं उससे संवाद छेड़ता जाता था -





"है कौन मूर्ख वहां बतलाओ,
अपना चेहरा मुझे दिखलाओ।
जानते नहीं तुम कौन हूँ मैं?
पहचानते नहीं कौन हूँ मैं?
किस आशय से नज़दीक आते हो?
साये की तरह पीछे लहराते हो।





मैं यहां का हूँ मसीहा,
मैं वो ज्ञानी शख्स हूँ,
अभिनंदनीय हूँ मैं यहां सभी का,
लोग कहते मैं ब्रह्म का अक्स हूँ।





तू होता कौन यहां जो सहसा मुझे चौंकाता है?
मेरे चिंतन में बाधा बन खुद को मुझसे छुपाता है!
मेरे पास इतना धन-धान्य भरा,
तेरा भी मोल करा सकता हूँ,
मेरा यहां अधिकार बड़ा,
तुझे बिकवा भी सकता हूँ।
यहां अधिपत्य है मेरा
जहां मन हो वहां मेरा डेरा है,
यदि झुक जाए तू मेरे सम्मुख,
हर ऐश्वर्य तुझे दिला सकता हूँ।





मुख खोल कर जवाब दे,
पक्षधर होने का प्रमाण दे!"





जैसे एक बिजली कौंध गयी,
हो प्रकृति जैसे मौन गयी
कानों से एक विचित्र स्वर टकराया था
हर अणु में रोमांच भर आया था।
अट्ठहास कर वह बोला, "समझता तू खुद को अति ज्ञानी है
शरीर को समझता पहचान अपनी, मनुष्य, तू बाद अज्ञानी है!
चल तुझको सत्य बताता हूँ,
तुझसे अपना परिचय करवाता हूँ।
मैं हूँ लोभरहित, मुझको कुबेर तक नहीं मोह सकता है,
है तेरी क्या बिसात बालक, तू तो अभी बहुत ही कच्चा है।





सोचता है तू, मुझको संपत्ति धन-धान्य दिखायेगा,
किस काम आएंगे ये जब तू मेरे साथ चला जायेगा?
मैं हूँ वह जिससे थर्राता यह लोक तेरा,
मैं हूँ वह, जो तेरा शरीर यहाँ मिटने छोड़ जाता हूँ,
तेरे हृदय में हाथ डाल प्राण निकाल ले जाता हूँ।





मैं यम का हूँ दास बड़ा,
मैं कभी नहीं बिक सकता हूँ,
मैं अंतर करता नहीं, उचित समय पर -
हर जीव के प्राण हर सकता हूँ।
मैं हूँ अखंड, पुरातन, काल के साथ ही मैं सदैव चलता हूँ,
जन्म जो लेता है सृष्टि में,
मुक्त करने उसको निकलता हूँ।





पूरे ब्रह्मांड में है वास मेरा,
मैं हर घड़ी चलता रहता हूँ,
अस्थिर रहके एक समय,
एकाधिक स्थानों पे मैं बसता हूँ।
छूट नहीं सकता है कोई मुझसे,
मैं वह जीवन की सच्चाई हूँ,
जीवन-मरण के चक्र का अभिन्न अंग,
माया की देता मैं दुहाई हूँ।





महादेव के तांडव का अंत हूँ मैं,
ब्रह्मा के चेतन की अगुवाई हूँ,
श्रीराम के चरणों का दास हूँ मैं,
श्रीकृष्ण के विश्वरूप की गवाही हूँ।
दास हूँ मगर फिर भी श्रीराम को लेने मैं आया था,
और सीता जी को भी मैंने वापस बैकुंठ पहुंचाया था।
तीर की शैया पर लेटे हुए भीष्म की मुझसे विनती थी,
मैं आया तब भी था, बस उचित समय उनकी अपनी गिनती थी।





द्वापर युग के अंत के लिए भी मैं ही क्षमा-प्रार्थी था,
गांधारी के श्राप से झुका था मैं,
जाने को इस लोक से स्वयं श्रीकृष्ण ने, बनाया अपना सारथी था।
रावण का अभिमान भी मैं था,
लंका में अग्निकांड भी मैं था,
श्री हनुमान के वारों से,
असुरों का उत्थान भी मैं था।
दुर्योधन की ज़िद और झूठी शान भी मैं था,
कर्ण का वह महादान भी मैं था,
अभिमन्यु हत्या के पाप का फल,
द्रौपदी के पांचों पुत्रों की जान भी मैं था।
धृतराष्ट का अंधा राज मोह,
कुरुक्षेत्र में शंखनाद भी मैं था,
और, अर्जुन के गांडीव से निकले बाण भी मैं था।





अतः हे मानव! मुझे तू नहीं खरीद सकता है,
मेरा मोल न तो इतना भी सस्ता है।
इसलिए, सही कर्मों की आदत को बनाना होगा,
दूसरों के लिए जीना तुझे अपना लक्ष्य बनाना होगा,
क्योंकि मेरा परिचय स्मरण रहे-
जिसने जन्म लिया है, उसे एक दिन तो जाना होगा।


Thursday, 24 May 2018

The truth of Life

Beyond this day, if we shall find,

a loss of will to yearly stroll,

and seek the meek embrace,

of beloved sleep and swelling toll.

 

It means we will soon in time,

see life's greatest truth.

An old friend will come and greet,

in the morning chirps or night owl's hoot.

 

He, the death, is most trustworthy of our ends,

rest were just mirthless games,

of old friends or foes, doubtful,

devious, with varied masks they played.

 

He stands behind every door,

to shake your hand one day

just nod and smile, same jovial mood,

when maybe few times in your life

you pass those menacing corridors.

 

Do not fear but be delighted,

it is the fate of every being.

Like the butterfly from its cocoon,

it is a new, another journey yet to be seen.

 

Live the life free of hate,

and grasp his hand with a merry look.

Pass free of any bounding yearning,

as there is no question in the end

of what you made and what you took.

 

It is the divine truth of life,

ugly sometimes it may seem.

But death is the ultimate absolute,

of every mortal, every life, resolute.

 

He is the constant companion of every being,

Oblivious to their actions in life.

Standing between heaven and earthen layer,

as an unalterable truth,

with every soul and every prayer.

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